शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

वो सुबह जरूर आएगी..!






कुछ दिन पहले मैं अपनी बेटी के स्कूल पैरेन्ट्स-टीचर्स मीटिंग में गई थी। वहाँ मेरी मुलाकात मान्या और शशांक से हुई। दोनों भाई-बहन थे। दोनों ने मिलते ही मेरा दिल चुरा लिया। अब आप सोच रहे होंगे, ऐसी क्या खास बात थी दोनों में? जब मैं ये कहूँगी बहुत प्यारी बौंडिंग थी दोनों में, बहुत ही प्यारी अंडरस्टैंडिंग थी उन दोनों में और वे दोनों एक-दूसरे के प्रति बहुत ही ज्यादा प्यार और अपनापन जता रहे थे। आप अब भी यही सोच रहे होंगे कि फ़िर भी ऐसी क्या खास बात हो गई? अक्सर भाई-बहनों का प्यार ऐसा ही होता है। खास बात वो है, जो अब मैं आपको बताने जा रही हूँ, शायद आप चौंके भी। भाई की उम्र १६ वर्ष थी और वो पूरी तरह दूसरों पर आश्रित था। वो एक `Mentally-Challenged Child’ था। बहन की उम्र यही कोई १० वर्ष थी, पर वो जिस तरह अपने भाई की देखभाल कर रही थी, तो कोई भी उसे उसकी माँ होने का धोखा खा सकता था। .. :))

अब मुद्दे की बात पर आते हैं। यहाँ मेरा मकसद आपको महज इन भाई-बहन के प्यार से परिचित कराना नहीं था, बल्कि उस रवैये की ओर आपका ध्यान खींचना था, जो समाज विकलांग / अपाहिज (बच्चों / व्यक्तियों) के प्रति दिखाता है। समाज के सभी लोग इस तरह के लोगों से एक दूरी बना कर रखना पसन्द करते हैं और अगर कभी करीब आते भी हैं, तो सिर्फ़ ‘सहानुभूति’ जताने हेतु। मैंने तो अक्सर लोगों को विकलांग / अपाहिज लोगों के प्रति बेचारगी प्रदर्शित करते ही देखा है और कभी-२ तो ये लोग इनके प्रति घृणा का प्रदर्शन करने से भी बाज नहीं आते। मैं यहाँ पर ‘बर्फ़ी' फ़िल्म के एक दृश्य का जिक्र करने से खुद को रोक नहीं पा रही हूँ, जब प्रियंका चोपड़ा के घर पर पार्टी चल रही होती है। प्रियंका चोपड़ा ने इस फ़िल्म में ‘ऑटिज़्म’ पीड़ित लड़की का किरदार निभाया था। फ़िल्म के दृश्य में वो लड़की वहाँ गाये जा रहे एक गाने को पसन्द आने पर खुद भी जोर-२ से उसे गाने लगती है; जिसे सुनकर वहाँ उपस्थित बाकी लोग जोर-२ से हँसने लगते हैं। ये देख कर लड़की के माता-पिता शर्मिन्दा हो जाते हैं और वहीं दूसरी तरफ़ वो लड़की जार-२ रोती हुई, यही कहती रह जाती है कि “हँसो मत- हँसो मत”...। बाद में उस लड़की को उसके नाना के घर भेज दिया जाता है।





मेरे मन में अक्सर ये ख़्याल आता है कि जब हमें सामर्थ्यवान होते हुये प्यार और अटेंशन की इतनी आवश्यकता होती है, तो उन्हें कितनी होती होगी; जबकि वो हम पर कई तरह से आश्रित भी होते हैं। आज जब मैंने उन भाई-बहन को देखा, तो यही बात बार-२ दिमाग में घूमती रही कि क्यों ना हम समाज को उनके प्यार की तरह ही खूबसूरत बना दें। जहाँ किसी भी भेदभाव से परे सिर्फ़ प्यार ही प्यार बिखरा दिखाई दे। मैं तो उन माता-पिता की भी प्रशंसा करना चाहूँगी, जिन्होंने अपनी बच्ची को अपने भाई के साथ इतने प्यार से पेश आना सिखाया। शशांक बोल नहीं पाता, पर फ़िर भी वो सबको बार-२ अपनी टूटी-फ़ूटी भाषा में यही कह रहा था कि “ये मेरी बहन है मान्या। ये मुझे बहुत प्यार करती है।”

मैं उन दोनों की फ़ोटो भी खींच कर लाई, जो ऊपर मैंने लगाई है। अपने भाई के साथ जाते हुये मान्या मुझे ‘बाय-बाय’ कर रही थी और मैं सिर्फ़ यही सोच रही थी कि क्या चाहते हैं ये लोग हमसे, सिर्फ़ यही ना कि.....

“चार कदम बस चार कदम, चल दो ना संग तुम मेरे”.....


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3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-01-2016) को "बेईमानों के नाम नया साल" (चर्चा अंक-2210) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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