आज अपनी मुस्लिम कामवाली से होली खेलने के बारे में पूछने पर जो जवाब मिला,
वो दिमाग ‘सुन्न’ कर देने वाला था।
जब मैंने पूछा कि जब हम खुशी-२ ईद मनाते हैं, तो तुम लोग होली क्यों नहीं मनाते?
ये सुनकर उसके चेहरे के भाव बिगड़े और थोड़ा चिढ़कर बोली:
‘आप लोग हमारे ‘हुसैन’ के ‘खून’ से होली खेलते हो।’
मैं सन्न रह गई, इस जवाब की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
मैंने पूछा, तुमसे ऐसा किसने कहा?
‘हमारी ‘कुरान’ में लिखा है’, जवाब मिला।
‘तुमने ‘कुरान’ पढ़ी है?’
‘नहीं.... हमारे लोगों ने बताया है।’
फ़िर मैंने उसे बैठाकर ‘प्रहलाद और होलिका’ की कथा सुनाई तथा हिन्दुओं के द्वारा
होली मनाये जाने का कारण बताया। पता नहीं, वो मेरे जवाब से कितना सन्तुष्ट हुई।
मेरे मन की बेचैनी अभी भी समाप्त नहीं हुई है। क्या दे रहे हैं हम अपनी आने
वाली पीढ़ियों को? एक-दूसरे के प्रति नफ़रत, वो भी धर्म के नाम पर झूठी बातें फ़ैलाकर।
हमारी सहिष्णुता और सर्व-धर्म-समभाव की भावना तो जाने कहाँ लुप्त हो गई।
‘धर्म’ उस ईश्वर / अल्लाह तक पहुँचने के मार्ग भर हैं, उससे ज्यादा कुछ नहीं।
कृपया आप इन्हें अपने जीने और मरने की वजह मत बनाइए।
आइए इस होली पर हम सारे बैर-भाव भूल कर हिन्दु और मुस्लिम धर्मों को आपस में
गले मिला दें। ( मैंने सिर्फ़ दो धर्मों का उल्लेख इसलिए किया है, क्योंकि पिछले कुछ
सालों में इनके बीच की खाई निरन्तर बढ़ती जा रही है। आप इसे अन्यथा न लें। )
यही हमारी इस ‘होली’ पर एक-दूसरे के प्रति सच्ची शुभकामनाएँ होंगी।
इन्ही सभी वजहों से तो ये कटुता बढ़ी है.....सामयिक और सुन्दर पोस्ट.....आप को भी होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@हास्यकविता/ जोरू का गुलाम
सच कहा ....
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएं
A very good post..... i think this type of communication gap is very high in both communities.
जवाब देंहटाएंRais Khan
qaumifarman@gmail.com
ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह...................
जवाब देंहटाएं