बुधवार, 2 अप्रैल 2014

लप्रेक (लघु प्रेम-कथा) – [३]






दुनिया से निराली प्रेम कहानी थी उनकी और ऐसे ही निराले थे वो, कुहू और कनिष्क। एक-दूसरे से बिल्कुल अलग, परन्तु दूध और पानी की तरह एक-दूसरे से मिले हुए। कुहू जब तक कनिष्क को अपने दिन भर की एक-२ बात न बता दे, उसे चैन नहीं पड़ता और कनिष्क भी उसकी छोटी से छोटी बात को बड़े प्यार से सुनता। कुहू, कनिष्क की एक बात से बड़ा चिढ़ती थी कि वो उससे अपनी कोई भी बात शेयर नहीं करता था। पर कुहू को ये नहीं पता था कि वो ऐसा जानबूझकर करता था। कनिष्क को उसे सताने में बड़ा मजा आता था; क्योंकि जब वो रूठ जाती थी, तो बिल्कुल गुड़िया की तरह लगती थी और वो उसे मनाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था। छोड़ता तो वो उसे सताने का भी कोई मौका नहीं था, लेकिन वो ये नहीं जानता था कि कुहू को उसके दिल की हर बात पता होती है। कुहू जानती थी कि वो उसके दिल की छोटी से छोटी ख्वाहिश पूरा करने के लिए जी-जान लगा देता है, भले ही उसे बताता न हो। उसके इसी प्यार पर तो बलिहारी जाती थी वो। इन्हीं छोटी-२ बातों ने उनकी ज़िन्दगी की बगिया को महका रखा था और वे उस बगिया में खिले दो फ़ूलों की तरह अपनी खुशबू से एक-दूसरे की ज़िन्दगी को खुशनुमा बना रहे थे; बिल्कुल इस गीत की तरह................

किसी ने अपना बना के मुझको, मुस्कुराना सिखा दिया।
किसी ने हँस के अँधेरे दिल में, चिराग जैसे जला दिया॥

वो रंग भरते हैं ज़िन्दगी में, बदल रहा है मेरा जहाँ।
कोई सितारे लुटा रहा था, किसी ने दामन बिछा दिया॥

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