किसी का जरा सा लालच और हम में से ही कुछ लोगों की ज़रा सी बेफ़िक्री कितनी बडी
घटना और तबाही का वायस हो सकती है, यह अभी हाल की ही एक घटना से प्रकाश में आया है।
एक प्राइवेट हास्पीटल की एक नर्स के लालच से एक हँसता-खेलता परिवार तबाह हो गया। वह
नर्स हास्पीटल के ब्लड-बैंक में तैनात थी और पैसों के लालच मे जाँच-प्रक्रिया से अस्वीकृत
हुये रक्त को भी मरीजों के लिए दे देती थी।
उसके इस लालच का शिकार हुआ एक परिवार; और कुछ ही दिनों में हँसता-खेलता परिवार
मौत के मुँह में समा गया।
इस परिवार में पति-पत्नी, उनकी तीन पुत्रियाँ और एक पुत्र था। पत्नी की पहली
गर्भावस्था के समय रक्त चढाया गया, जिससे उसमें एड्स के वायरस पहुँच गए। उसके द्वारा
परिवार के सभी सदस्यों तक एड्स का दानव पहुँच गया, पर उनकी बेफ़िक्री की ज़िन्दगी ने
उन्हें इसकी खबर नहीं होने दी।
ज़िन्दगी की भयानकता जब सामने आयी, तो पूरे परिवार को लील कर ही मानी। एक दिन
अचानक पत्नी का चेहरा अजीब तरह के छालों से भर गया। हास्पीटल में जाँच से पता चला कि
उसे एड्स है और अन्तिम स्टेज है; अगले ही दिन पुत्र के साथ भी यही घटना हुई और जाँच
के बाद सभी को एड्स होने की पुष्टि हुई और कुछ ही दिन बाद पत्नी और पुत्र की मौत हो
गई, क्योंकि वे अन्तिम स्टेज पर थे।
पिता और तीनों पुत्रियों ने इस गम से उबरकर अपना इलाज़ प्रारम्भ किया और ज़िन्दगी
से दो-२ हाथ करने की ठान ली। हौसले की प्रतिमूर्ति था पूरा परिवार। परन्तु समाज को
उनकी ये ज़िन्दादिली रास नहीं आई और वही हुआ जो एक “So called Society’’ से अपेक्षा
की जा सकती है।
तीनों बच्चियों को स्कूल से निकाल दिया गया, क्योंकि साथियों ने साथ बैठने
से और गुरुओं ने ग्यान देने से इन्कार कर दिया था। रिश्तेदारों ने भी साथ छोड़ दिया
(जो कि ऐसे वक़्त पर हमेशा ही अकेला छोड़ देते हैं)। हद तो तब हो गई, जब बड़ी बेटी के
प्रेमी ने भी (जिसके लिए कभी वो परी समान हुआ करती थी) उसे ठुकरा दिया। जब प्यार से
थामने वाला हाथ दगा कर जाये, तो इन्सान के सारे हौसले पस्त हो जाते हैं और यही हुआ
उस लड़की के साथ।
वो शायद जानती थी कि उसके बाद उसकी बहनें इस समाज के भेड़ियों का सामना नहीं
कर पाएँगी, पापा शायद कर लें। उसने अपनी बहनों को दवा की जगह ज़हर देकर खुद भी मौत को
गले लगा लिया; शायद सुकून से मरने के लिये, जीना तो उनकी किस्मत में था ही नहीं शायद।
स्तब्ध हैं ना.....?? देखकर कि किस तरह ये समाज हौसलों को तोड़ने की क्षमता
रखता है। सँवारना कब सीखेंगे हम? शायद कभी नहीं। तो क्या कहते हैं आप? हम सब मिल कर
एक कदम बढ़ाएँ आज से ही...................???
एक विशेष बात:- कृपया हर तीन साल पर
अपने परिवार की एक बार एड्स जाँच जरूर करवाएँ। बेफ़िक्री अच्छी है, पर जिम्मेदारी के
साथ। आभार...!
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स्तब्ध हैं ना.....?? देखकर कि किस तरह ये समाज हौसलों को तोड़ने की क्षमता रखता है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच कहा आपने ... सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति
बिल्कुल सही कहा आपने ………कुछ तो करना होगा
जवाब देंहटाएंबहुत दर्दनाक क़िस्सा है ! जानकारी देने का आभार !
जवाब देंहटाएं~सादर !!!
सही कहा ... जरूरी है करना ...
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद घटना है. प्रचार प्रसार के बाद भी एड्स के प्रति लोगों की जागरूकता नहीं है. समाज की सोच को बदलना बहुत कठिन है. निश्चित ही हम सभी को इस दिशा में सतर्क और संवेदनशील होना चाहिये.
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