हमारे एक परिचित आजकल बहुत परेशान रहते हैं, वो इतना टूट गये हैं कि ज़िन्दगी
से ही मुख मोड़ लिया है उन्होंने। बार-२ एक ही बात उन्हें झकझोरती है कि क्यों नहीं
उन्होंने हमारी बात मान ली थी, जो हमने उनसे २ साल पहले कही थी। हमने उन्हें Health
Insurance कराने की सलाह दी थी, जो उन्होंने हँसते हुए यह कहकर सिरे से ही नकार दी थी
कि हमें इसकी क्या जरूरत है। हमारे घर में तो किसी को बुखार भी आने से पहले दो बार
सोचता है। बेकार में ही हर साल इतने रूपये बरबाद करने से कोई फ़ायदा ?
एक वो दिन था और एक आज का दिन है। कुछ महीने पहले पता चला कि उनकी पत्नी को
कैंसर है और आखिरी स्टेज़ है। ऑपरेशन में ४ लाख रूपये खर्च हो गये। उसके बाद भी ना तो
उनकी पत्नी ही ठीक हुईं और ना ही रूपये का बेसाख्ता खर्च होना बन्द हुआ। कुछ लोगों
के लिए ४ लाख रूपये ज्यादा बड़ी रकम नहीं होगी, पर उस आम इन्सान का क्या, जिसकी सालाना
आय ही १ लाख रूपये मुश्किल से होती हो और बचत १०,००० से भी कम।
उनके पास आज अफ़सोस करने के सिवाय और कोई चारा नहीं, परन्तु क्या हम उनसे कोई
सीख नहीं ले सकते। वैसे अगर बारीकी से देखा जाए, तो इसमें सिर्फ़ उनकी ही गलती नहीं,
गलती हमारी सरकार की भी है, जो हेल्थ पॉलिसी के प्रति लोगों को जागरुक करने में कोई
कदम नहीं उठाती। अन्य बड़े देशों जैसे- अमेरिका, रूस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि में तो आप
बिना अपना इंस्योरेंस कराये, वहाँ बसने की सोच भी नहीं सकते।
मुझे भी इसका ज्ञान आज से २ साल पहले हुआ, जब अपनी बेटी को एड्मिट कराने के
लिए हॉस्पीटल ले गई और उनका मुझसे पहला सवाल ये था कि क्या आपके पास कोई हेल्थ पॉलिसी
है? और मेरा जवाब ना में होने पर उनका कहना था कि फ़िर तो सारा खर्च आपको खुद ही करना
होगा। उस समय भी मुझे इसकी उपयोगिता का अहसास नहीं था। पर धीरे-२ जब खर्च बढ़कर ७ लाख
रूपये हो गया और हम सिर से पैर तक कर्ज़ में डूब गये; तब हमें ये अहसास हुआ कि हमसे
कितनी बड़ी गलती हो गई। पर शायद ये गलती हमारी नहीं थी, क्योंकि हमें तो इसके बारे में
पता ही नहीं था। हमने हॉस्पीटल से ही पॉलिसी के बारे में जानकारी एकत्रित की और वहाँ
से लौटते ही पूरे परिवार का Health Insurance करा लिया।
आप में से कइयों के मन में ये सवाल उठ सकता है कि प्राइवेट हॉस्पीटल जाने की
जरूरत ही क्या है? सरकारी अस्पताल भी तो हैं, जहाँ कोई पैसा खर्च नहीं होता; तो मैं
उन लोगों से सिर्फ़ यही कहना चाहूँगी कि शायद आप सरकारी अस्पतालों की हालत के बारे में
नहीं जानते और AIIMS जैसे बड़े अस्पतालों में तो इतनी भीड़ होती है
कि नम्बर आते-२ ही महीनों लग जाते हैं। वैसे भी अगर वहाँ बेड खाली ना हो, तो वहाँ से
वापस भेज दिया जाता है। जहाँ तक इमरजेंसी की बात है, तो उस समय मरीज की हालत को देखते
हुये दूरी को प्राथमिकता दी जाती है ना कि प्राइवेट या सरकारी अस्पताल को; अर्थात्
जो अस्पताल सबसे नजदीक हो, वहाँ मरीज को ले जाया जाता है।
हाँ, तो मैं बात कर रही थी हेल्थ पॉलिसी की। हॉस्पीटल से लौटने के बाद मैंने
अपने सभी परिचितों को इस बारे में जागरूक किया और अब इस पोस्ट के माध्यम से आप सभी
लोगों तक ये बात पहुँचाने की कोशिश कर रही हूँ। सिर्फ़ ६,००० रू० प्रतिवर्ष खर्च करके
आप स्वास्थ्य-सम्बन्धी अचानक घटने वाली आपदाओं से स्वयं को मुक्त रख के खुश रह सकते
हैं; और ये ६,०००/- केवल एक व्यक्ति का नहीं, पूरे परिवार का Insurance
है। आप
इसे प्रति-व्यक्ति का भी करा सकते हैं। वैसे अलग-२ हैसियत और अलग-२ जरूरत के मुताबिक
कई तरह के प्लान मार्केट में उपलब्ध हैं, जिसकी जानकारी आप policybazar.com
पर जाकर
ले सकते हैं और Toll Free No. से आप कॉल भी कर सकते
हैं। वे बड़े ही धैर्यपूर्वक आपको पूरी जानकारी देते हैं। वैसे Apollo
Munich और
ICICI
का Family
Floater आम
मध्यम वर्ग के लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है।
वैसे मैं सरकार और समाजसेवी संस्थाओं से आग्रह करूँगी कि वे लोगों के बीच हेल्थ
पॉलिसी के प्रति जागरूकता पैदा करें और उन्हें एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित
करें।
तो फ़िर मिलते हैं, कुछ नए विचारों एवं नई जानकारियों के साथ। तब तक के लिए
अलविदा दोस्तों.....। :)
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nice information .thanks gaytri ji . आभार सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
जवाब देंहटाएंऐसी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद। :)
जवाब देंहटाएंनये लेख :- समाचार : दो सौ साल पुरानी किताब और मनहूस आईना।
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