रविवार, 7 जून 2015

मैं और मेरे पापा-३ (पापा की यादों का कोलाज़)



                          पापा के ६०वें जन्मदिन पर खींची गई फ़ोटो...


आज ७ जून को पापा का जन्मदिन है। अगर आज वो होते और मैं हमेशा की तरह सुबह-२ उन्हें फ़ोन करती, तो उनका पहला वाक्य यही होता, “अरे! मुझे तो याद ही नहीं था, किसी ने बताया भी नहीं।” अपने जन्मदिन पर भी पूरे दिन इन्तजार करने के बाद रात को जब खुद ही मैं फ़ोन करके बताती, तब भी वो ऊपर वाले वाक्य को ही रिपीट करते थे। ७ अंक (७,१६,२५ तारीख) को पैदा होने वाले अच्छे जीवन-साथी होते हैं, ये तो पता था; पर बहुत अच्छे पापा भी होते हैं, ये नहीं पता था।

इन गर्मियों में जैसे-२ पारा चढ़ रहा है, वैसे-२ पापा की यादों ने भी मेरे मन-मस्तिष्क में दस्तक देनी शुरू कर दी है। उन्हें गर्मी बहुत लगती थी या सच कहें तो उन्हें सभी मौसम बहुत परेशान करते थे, इसीलिए वो कहीं आते-जाते भी नहीं थे। अपना घर ही उन्हें सबसे प्यारा था। मैं भी उन्हीं पर गई हूँ, कहीं भी घूमना-फ़िरना मुझे पसन्द नहीं। शायद ये हम दोनों के ‘शनि’ महाराज के नक्षत्र में पैदा होने का फ़ल है। हाँ, तो मैं गर्मी की बात कर रही थी, गर्मी देवी उन्हें बहुत प्रताड़ित करती थीं और सजा मैं भुगतती थी। मैं रोज सुबह पूरे घर का पोंछा लगाती और वो रोज दोपहर को अपने कमरे में पानी भरकर उसे दाग-धब्बों वाला बना देते और उस पर तर्क ये कि चाहे मैं गर्मी से मर जाऊँ, पर तेरा कमरा चमकते रहना चाहिए। उस कमरे को वैसा छोड़ा भी नहीं जा सकता था, क्योंकि वो हमारे घर की ‘बैठक’ ( ड्राइंग-रूम ) थी। उनके लिए रोज नहाने के लिए हैण्डपम्प से ठण्डा पानी भी खींचना पड़ता था, वरना वो मेरे नहाने के पानी पर कब्जा कर लेते थे; बाकी लोग तो टंकी के गुनगुने पानी से नहा कर संतुष्ट हो जाते थे। .. :))

शर्बत से सम्बन्धित एक मजेदार किस्सा है, जिसे आप सब से शेयर करती हूँ। गर्मियों में उन्हें रोज़ कम-अस-कम ३-४ बार शर्बत पीना होता था, जो कोई मुश्किल काम नहीं था मेरे लिए; पर मुझे चीनी घोलने के लिए देर तक चम्मच हिलाना पसन्द नहीं था। मैंने सरलता के लिए एक आइडिया निकाला; शुगर-सिरप बनाकर, उसी में नींबू निचोड़ कर और बोतल में भरकर फ़्रिज़ में रख दिया। बस अब उसमें पानी भर मिलाना था और शर्बत तैयार। मैं बहुत खुश थी, पर मुझसे भी ज्यादा खुश पापा थे; कहने लगे, अब तो तेरी भी जरूरत नहीं, मैं खुद ही बना लूँगा। वैसे मुझे शाबासी भी मिली, इस आइडिया पर। पर... मेरी खुशी एक दिन भी नहीं टिक पाई, क्योंकि उन्होंने वो एक लीटर शुगर-सिरप एक दिन में ही खत्म कर दिया, १०-१५ गिलास शर्बत पीकर। पहले तो मैंने उन पर खूब गुस्सा किया, जी भर कर, फ़िर मन-मसोस कर एक डिब्बे में चीनी पीस कर रख दी। .. :((

वो अपने ( और हमारे भी ) शरीर के आराम का बहुत ध्यान रखते थे; उनका कहना था, ‘ऐसे रुपये कमाने का क्या फ़ायदा कि शरीर कष्ट में रहे।’ ऐसा नहीं कि वो आराम-तलब थे, बल्कि शायद इसलिए कि उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत काम किया था। हम लोगों के आराम में बाधा इसलिए नहीं पड़ने देते थे कि कहीं पढ़ाई बाधित ना हो। इन्वर्टर हमारे घर तब आ गया था, जब पहली बार हम उससे परिचित हुए थे, यानि करीब २० साल पहले; जिस समय वो काफ़ी मँहगा और मेन्टीनेंस ( देखभाल ) के मामले में काफ़ी दु:खी करने वाला था। चूँकि यू.पी. में बिजली बमुश्किल आती थी, इसलिए घर के हरेक व्यक्ति के लिए अलग-२ बैटरी वाला पंखा भी था।
कूलर का भी हमने ‘वो’ वाला वर्जन देखा था, जिसके अन्दर टेबल-फ़ैन रखकर चलाया जाता था। सबसे काबिले-तारीफ़ बात ये थी उस कूलर में कि पानी की सप्लाई के लिए कूलर के ऊपर बनी एक छेदों वाली ट्रे में हर १५ मिनट में २ मग पानी भर कर डालना पड़ता था। .. :))

ये सब सुन कर आप ये ना सोचें कि हम लोग बहुत पैसे वाले थे। मेरे पापा एक ‘ईमानदार’ सरकारी नौकर थे और इसलिए हम एक ‘निम्न मध्यमवर्गीय’ परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके इन्हीं सब खर्चों को देखकर मम्मी अक्सर नाराज होकर गुस्सा करतीं, तो पापा का एक ‘निश्चित’ डायलॉग था, जो हर बार दुहराया जाता और मेरा ये मनपसन्द डायलॉग था.....
“जितने का खर्च नहीं हुआ, उतने का तो तुमने मेरा खून जला डाला...।” .. :))

पापा.....  पापा.....  पापा.....
यादें.....  यादें.....  यादें.....
ज़िन्दगी खत्म हो जायेगी मेरी, पर आपकी यादें नहीं.....

                 **********

3 टिप्‍पणियां:

  1. आज की ब्लॉग बुलेटिन बांग्लादेश समझौता :- ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2015) को चर्चा मंच के 2000वें अंक "बरफ मलाई - मैग्‍गी नूडल से डर गया क्‍या" (चर्चा अंक-2000) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

    जवाब देंहटाएं
  3. papa or maa ki yaad sari zindgi saath rehti hai.. bahut accha likha hai. meri blog per aap ka swagat hai.

    जवाब देंहटाएं

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...