शनिवार, 11 अप्रैल 2015

मैं और मेरे पापा-२ (पापा की यादों का कोलाज़)






आज की कड़ी में बात करते हैं उन गलतियों की, जो कभी मेरे द्वारा, तो कभी पापा के द्वारा अनजाने में की गईं और हम दोनों ही बहुत बाद तक उन्हें लेकर पछताते रहे; क्योंकि दोनों ही एक-दूसरे को उन गलतियों की वजह से ब्लैकमेल करते थे। पर प्यार तो फ़िर भी बरकरार रहा ना.......... :))

********

मैंने ज़िन्दगी में एक बहुत बड़ी गलती की, अपने पापा की राइटिंग की कॉपी करके बिल्कुल उनके जैसा लिखना सीख लेना। .. :))

वैसे उनकी राइटिंग बहुत सुन्दर थी, जिसकी वजह से आज भी मुझे अक्सर तारीफ़ के शब्द उपहार में मिल जाते हैं।

पर.......... उसके बाद से उनके ऑफ़िस का आधे से ज्यादा काम मुझे ही करना पड़ता था, जिसे वो अक्सर घर ले आते थे, मुझसे करवाने के लिए..... :((

********

एक और गलती की मैंने, जो उन्हें (कभी-२) खुश करने के लिए ‘उनकी पसन्द के अनुसार’ एकदम परफ़ेक्ट चाय बनाना सीख लिया।

पर अब तो रोज ही दिन में १५ बार चाय बनानी पड़ती थी और १५ बार ही गर्म भी करनी पड़ती थी (क्योंकि उन्हें चाय बनवाने के लिए तो चाय की तलब लगती थी, पर पीना याद नहीं रहता था .. :)) )

और हाँ, बस इसीलिए मैंने उनके साथ देर रात की पुरानी फ़िल्में देखना बन्द कर दिया था, क्योंकि जबरदस्त नींद आने के बावज़ूद मैं जैसे-तैसे फ़िल्म खत्म होने तक रुक पाती थी। पर जैसे ही सोने के लिए जाने लगती, वो चाय की फ़रमाइश कर देते। .. :((

********

एक जबरदस्त गलती पापा ने भी की। मुझे सजा देने के लिए जबरदस्ती पकड़कर गणित पढ़ाने की।

एक बार जब मैं ७वीं कक्षा में थी, पता नहीं किस बात पर नाराज़ होकर उन्होंने फ़रमान सुनाया, “जाओ, अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित की किताबें लेकर आओ।” और फ़िर मुझे बैठाकर २-३ घण्टे पढ़ाते रहे।

पर पापा ने तब शायद सोचा भी नहीं होगा कि वो अपनी ज़िन्दगी की महानतम्‌ गलती करने जा रहे हैं; क्योंकि उसके बाद मैं अक्सर किताबें लेकर उनके पास पहुँच जाती थी और वो मन-मसोसकर मुझे पढ़ाने बैठ जाते थे। इस चक्कर में उनके टी.वी. के कई कार्यक्रम छूट जाते थे (दरअसल उन्हें TV देखने का बहुत शौक था, इससे सम्बन्धित भी कई रोचक कहानियाँ हैं, जो फ़िर कभी)

कई बार तो तरह-२ के बहाने भी बनाते थे, पर मैं तो मैं हूँ ना, धुन की पक्की। वैसे वो पढ़ाते बड़ा कमाल थे और गणित की तो बात ही मत पूछो। उनके सामने सारे अंक जमूरे बन जाते थे और गणित सर्कस, फ़िर जो मजा आता था कि पूछो मत। इसी वजह से मेरी गणित इतनी अच्छी है; हाँ... ये बात और है कि मैं अक्सर इसका श्रेय अपनी कुण्डली में ‘बुध’ की अच्छी प्लेसमेंट को दे देती हूँ..... ;)

                        **********

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...