दोपहर होने को आई थी, पर आँसू थे कि थमने का
नाम ही नहीं ले रहे थे नीलेश के। वह सुबह से नीलू का हाथ थामे बैठा था, जो लगातार रोते
हुए एक ही बात दोहराये जा रही थी,
“मैं जीना चाहती हूँ नील। मैं तुमसे दूर नहीं
जाना चाहती। जबसे तुमसे मिली हूँ, पहली बार ज़िन्दगी में जीने की ललक जगी है।”
जीना तो नीलेश भी नहीं चाहता था उसके बिना। ज़िन्दगी
भर जिस सच्चे प्यार की तलाश करता रहा, अब वो उसके सामने है; पर ज़िन्दगी को शायद ये
मंजूर नहीं, वो उसकी प्यारी नीलू को उससे छीन लेना चाहती है।
पिछले ६ महीनों से नीलू लगातार डॉक्टर से मिलना
टालती जा रही थी, जबकि उसकी तबियत दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थी। जरा सा चलने पर ही थक
जाती, बैठे-२ चक्कर आने लगते। ये देखकर जब नीलेश उसे डॉक्टर के पास चलने को कहता, तो
वो हँसकर उसकी गोद में लेट जाती और नीलेश उसके बालों में उँगलियाँ फ़िराने लगता।
“पता है नील..........मैं बहाना करती हूँ तबियत
खराब होने का। इससे तुम मुझे ज्यादा प्यार करते हो।”
ये सुनकर नीलेश उसे उठाकर अपने गले से लगा लेता
और प्यार से पुचकार कर कहता, ‘पगली.....मैं तो तुझे इससे भी ज्यादा प्यार करना चाहता
हूँ। सारे जहाँ की खुशियाँ तेरी झोली में डाल देना चाहता हूँ। पर मेरी एक शर्त है,
तुझे आज ही डॉक्टर को दिखाना होगा और लगभग खींचते हुए वो उसे डॉक्टर के पास ले गया
था।
डॉक्टर को उसका निश्तेज़ चेहरा और हालत देखकर
ही शक हो गया था। उन्होंने कुछ टेस्ट भी करवाये थे, जिनकी रिपोर्ट आज ही आई थी। डॉक्टर
का शक सही था, नीलू को ब्लड कैंसर था। डॉक्टर ने तुरन्त ही उसे हॉस्पीटल में भरती कर
लिया था।
दोपहर के २ बजने को हैं, तभी डॉक्टर ने कमरे
में प्रवेश किया। नर्स ने नीलेश को हटाते हुए कहा,
‘मि. नीलेश, जरा आप एक तरफ़ आ जाइये, डॉक्टर साहब,
पेशेन्ट को देखना चाहते हैं।’
पर ये क्या? नीलेश का शरीर बेड पर एक ओर लुढ़क
गया, नीलू का शरीर भी बेड पर निश्तेज़ पड़ा था। पर दोनों के हाथ अब भी एक-दूसरे को थामे
हुए थे और आँखे एक-दूसरे के प्यार में डबडबाई हुई..........एक-दूसरे के बिना जीने की
कल्पना से परे।
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bahut achhi lagi, ek dam man mein utarti chali gai.
जवाब देंहटाएंOverwhelming story!
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