एक बार एक कहानी पढी थी, जो आज तक मेरे ज़ेहन से नहीं निकली है और जब-तब मेरे मस्तिष्क को झकझोरती रहती है... एक सवाल बार-२ उठता है मेरे मन में, क्या प्यार सिर्फ साथ-२ हंसने-खेलने का नाम है ? शायद नहीं................
जब तक एक की आँख का आंसू दूसरे की आँख से ना निकले, तब तक प्यार की इब्तिदा नहीं होती...
साथ-२ जीने-मरने की कसमें खायी थी दोनों ने और विश्वास भी था एक-दूसरे पर, शायद एक-दूसरे से ज्यादा... १७ मई को शादी थी उनकी...
"आत्म का आत्म से मिलन, विश्वास की छाँव तले...!"
परन्तु ये विश्वास की दीवार उस दिन भरभराकर कर गिर गई, जिस दिन उन्हें पता चला की लड़की को Bone TV है... शायद अंतिम स्टेज थी..........
लड़की की आँखों के सामने से सारे रंग अचानक ही गायब हो गए, जब उसने लड़के को खुद से दूर जाते देखा... शायद कभी वापस ना लौटने के लिए...............!!
लड़की को हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया गया... वो मौत की तरफ एक-२ कदम बढाने लगी... जिन्दगी का हाथ छूटता ही जा रहा था, कितना ही कसकर पकड़ने की कोशिश की उसने, फिर भी... आखिर ज़िन्दगी थी ना..........!!
सिस्टर, एक कैलेण्डर मिलेगा ? उसने पूँछा..........
एक आस थी, जो छूटने का नाम ही नहीं ले रही थी...............वो आएगा, जरूर आएगा...............!!
एक-२ दिन काटने लगी, कैलेण्डर पर... बहुत जल्दी थी उसे शायद, दिन नहीं कट रहे थे...उसे इंतजार था १७ मई का... आखिर उस एक पल के लिए ही तो जी रही थी वो... वो पल, जब कायनात की सारी खुशियाँ उसकी झोली में आने वाली थीं...उसके विवाह का दिन.................!!
दिन बीतते रहे इसी तरह...................
पर वो नहीं आया.....................!!
आज सुबह से ही उसकी आँखें दरवाजे पर टिकी हैं....................
आज १७ मई है...................!!
ज़िन्दगी की डोर भी हाथ से छूट गई, उस आस की तरह, सांझ ढलते ही.....
मौत को भी आज का ही दिन मुक़र्रर करना था उसके लिए....................!!
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सार्थ एदं सटीक!
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना ........
जवाब देंहटाएंओह .... मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंBone TV ---- ko bone TB kar len