शुक्रवार, 20 मई 2016

अगर तू है, तो कहाँ है?









लोग ईश्वर को नहीं मानते!
उनका कहना है कि अगर ईश्वर है, तो वो संसार में फ़ैले भ्रष्टाचार, अत्याचार, हिंसा, मारकाट, असहनशीलता और बुराइयों को क्यों नहीं रोकता?

पर शायद आप नहीं जानते। ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं है। ना ही वह हमारे द्वारा किये गये कार्यों के लिए उत्तरदायी है। ईश्वर, अल्लाह, GOD  चाहे जो भी नाम दे दें आप; वो प्रकृति में ३ प्रकार की शक्तियों के रूप में विद्यमान है : -
 
सात्विक, राजसिक और तामसिक।

ये ऊर्जायें प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-२ मात्रा में मौज़ूद रहती हैं और उसी के फ़लस्वरूप वो अपना कर्म करता है। आज हम भौतिकवादी प्रवृत्तियों और लालसाओं में इतना जकड़ गये हैं कि सर्वत्र नकारात्मक और तामसिक शक्तियों का बोलबाला है। सात्विकता की ओर तो जैसे हम बहना ही नहीं चाहते। हर अच्छी बात की ओर से जैसे हमने मुँह फ़ेर लिया है।

समाज में फ़ैली इन बुराइयों को रोकने कोई ईश्वर या अल्लाह नहीं आएगा। हमें ही उनका प्रतिनिधि होना होगा। अपने अन्दर सात्विकता पैदा करनी होगी। समाज में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा। तभी ये सारी बुराइयाँ खत्म होंगी और हम एक बेहतर युग की ओर कदम बढ़ायेंगे।

यहाँ एक सवाल आप के मन में आ सकता है कि हम अकेले क्या कर सकते हैं? तो मुझे यहाँ एक सुन्दर कथन याद आ रहा है कि,

“एक अकेला दिया अँधेरे को तो नहीं हरा सकता, परन्तु उसके लिए परेशानी तो पैदा कर ही सकता है।”

आप भी समाज में फ़ैली बुराइयों को फ़लने-फ़ूलने मत दीजिए। हमारे आसपास मौजूद बुरे लोगों को चैन से मत बैठने दीजिए। एक दिन ऐसा भी आयेगा, जब काफ़िला आपके साथ होगा और वो अकेले खड़े होंगे, ये सोचते हुये कि ‘हम अकेले क्या कर सकते हैं?’

जब हम में से प्रत्येक व्यक्ति सात्विकता और सकारात्मक ऊर्जा से भरा होगा, तो उस दिन हमें प्रत्येक व्यक्ति ही ईश्वर का साक्षात्‌ स्वरूप प्रतीत होगा और हमें ये पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी कि,

‘अगर तू है, तो कहाँ है?’



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